Skip to main content

Why Pranayam and Deep Breath

 Deep Breath




Please read the Full article carefully 

गहरी सांस लें और लंबे समय तक जीवित रहें


सांस ही जीवन है। हम पानी या भोजन के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकते हैं लेकिन सांस के बिना जीवन बस संभव नहीं है। जब हम साँस लेते हैं, तो हम केवल साँस लेने में वायु नहीं होते हैं, हम अपने शरीर और मन में ताजा ऊर्जा जोड़ते हैं। यह ऊर्जा उपचार और कायाकल्प है, यह प्रणाली को पुनर्जीवित और पोषण करता है। इसी तरह, जब हम सांस लेते हैं, तो हम केवल हवा को बाहर नहीं निकालते हैं, बल्कि हमारे शरीर और दिमाग से विषाक्त पदार्थ भी निकलते हैं।

जब हम तनावग्रस्त होते हैं या गुस्सा करते हैं तो हमारे सांस लेने के पैटर्न में बदलाव आता है। यह छोटा, तेज-तर्रार और अनियमित हो जाता है। ऐसी स्थितियों में पहली चीज जो हम आम तौर पर करने के लिए कहते हैं, वह है "गहरी सांस लें"।

हर दिन कुछ मिनट के लिए धीमी और गहरी सांस लेने का प्रयास करें। यह तनाव से उत्पन्न चिंता, अवसाद और विकारों से छुटकारा पाने में आपकी मदद कर सकता है। योगिक दर्शन का कहना है कि हमारा जीवनकाल हमारे जीने की संख्या पर निर्भर नहीं करता है लेकिन हम जो सांस लेते हैं उसकी संख्या पर निर्भर करते हैं। इसका अर्थ है "हम जो धीमी गति से सांस लेते हैं, अब हम जीते हैं"।

हम जानवरों को देखकर इसे आसानी से मान्य कर सकते हैं: एक कछुआ बहुत धीरे-धीरे सांस लेता है, लगभग चार सांस प्रति मिनट और 150 साल तक रहता है। दूसरी ओर, कुत्ते आराम से प्रति मिनट लगभग 24 साँस लेते हैं और केवल 13 साल तक जीवित रहते हैं

मनुष्य औसतन 15-17 सांस प्रति मिनट लेता है। जब हम तनाव में होते हैं तो यह बढ़ जाता है। प्राणायाम और ध्यान जैसी योग क्रियाएं बेहतर श्वास के लिए बहुत उपयोगी हैं। प्राणायाम में, उद्देश्य जानबूझकर हमारी सांस को नियंत्रित करना है, जिससे यह धीमा और गहरा हो जाता है। ध्यान (ध्यान) में, ध्यान की वस्तु के प्रति जागरूकता आ जाती है और ऐसा करते समय, साँस लेने की दर धीरे-धीरे धीमी हो जाती है, अक्सर प्रति मिनट एक से भी कम साँस लेने के लिए।

इसलिए धीरे-धीरे सांस लें और अपने जीवन में और साल जोड़ेंI

और अलग अलग तरीके से श्वास लेना रोकना और छोड़ने की क्रिया को ही प्राणायाम कहते हैं जो हमारे पूर्वजों ने हजारों साल पहले हमें बताया था, जिस पर यदि हम ध्यान दे दे हम प्रकृति के साथ मिलकर अलग अलग तरीके से श्वास लें और छोड़ें मेडिटेशन करें ध्यान लगा है तो हम लंबी उम्र आसानी से रोग मुक्त होकर शांत जीवन जी सकते हैं इसी जीवन जीने की कला को योग कहते हैं I

The normal breathing rate of of an adult it is about 15 -20 per minute, which works out to be 1200 times per hour and 28,800 times per day. According to Yoga Shastra it is better to limit this to within 21,600 per day.

Of Course, the main objective of Pranayam is to maintain the proper flow of breath which ultimately purifies our gross and subtle bodies as well as the mind  thus preparing the consciousness for the next steps Dharna means concentration and Dhyan means meditation

The main benefits of practicing Pranayam

Pranayam makes the body lighter

It is the only natural way to eliminate all carbon dioxide

Maintains good physical and mental health

Increases life span

Prepares one for higher yoga practices like concentration and meditation


Most people breath incorrectly,utilising only a small part of their lung capacity when they breathe, as such their breathing tends to be shallow, rapid, hasty and irregular.Poor breathing habits not only deprive the body of Oxygen and Prana, but also upset our mental balance.Our state of mind is affected by the breadth and the breath is in turn affected by it. And irregular breathing pattern is a sign of poor health. To achieve perfect health on all the dimensions,one needs to regulate the breathing pattern.


नाड़ियां
गोरक्ष संहिता के अनुसार नाभि के नीचे नाड़ियों का मूल स्थान है, उसमें से 72 हजार नाड़ियां निकली हैं, उनमें प्रमुख 72 हैं। उनमें से तीन प्रमुख नाड़ियां हैं- इड़ा, पिंगला तथा सुषुम्ना।

इड़ा नाड़ी बायीं नासिका तथा पिंगला नाड़ी दायीं नासिका से संबद्ध है।  इड़ा नाड़ी मूलाधार के बाएं भाग से निकलकर प्रत्येक चक्र को पार करते हुए मेरुदंड में सर्पिल गति से ऊपर चढ़ती है और आज्ञा चक्र के बाएं भाग में इसका अंत होता है। पिंगला नाड़ी मूलाधार के दाएं भाग से निकलकर इड़ा की विपरीत दिशा में सर्पिल गति से ऊपर चढ़ती हुई आज्ञा चक्र के दाएं भाग में समाप्त होती है। इड़ा निष्क्रिय, अंतर्मुखी एवं नारी जातीय तथा चन्द्र नाड़ी का प्रतीक है। पिंगला को सूर्य नाड़ी भी कहते हैं। इन दोनों के बीच में सुषुम्ना नाड़ी है, जो मेरुदंड के केंद्र में स्थित आध्यात्मिक मार्ग है। इसका आरंभ मूलाधार चक्र तथा अंत सहस्रार में होता है। इसी सुषुम्ना नाड़ी के आरंभ बिंदु पर इसका मार्ग अवरुद्ध किए हुए कुंडलिनी शक्ति सोयी पड़ी है। इस शक्ति के जग जाने पर शक्ति सुषुम्ना, जिसे ब्रह्मरंध्र भी कहते हैं, में प्रवेश कर सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्रार चक्र पर शिव से मिल जाती है।

जब बायीं नासिका में श्वास का प्रवाह अधिक होता है, तो इड़ा नाड़ी, जो हमारी मानसिक शक्ति का प्रतीक है, की प्रधानता रहती है। इसके विपरीत  जब दायीं नासिका में श्वास का अधिक प्रवाह होता है, तो यह शारीरिक शक्ति का परिचायक है तथा यह शरीर में ताप, बहिर्मुखता को दर्शाता है। जब दोनों नासिकाओं में प्रवाह समान हो, तो सुषुम्ना का प्राधान्य रहता है। इड़ा एवं पिंगला में संतुलन लाने के लिए शरीर को पहले षटकर्म, आसन, प्राणायाम, बंध तथा मुद्रा द्वारा शुद्ध करना होता है। जब इड़ा एवं पिंगला नाड़ियां शुद्ध तथा संतुलित हो जाती हैं, तथा मन नियंत्रण में आ जाता है, सुषुम्ना नाड़ी प्रवाहित होने लगती है। योग में सफलता के लिए सुषुम्ना का प्रवाहित होना आवश्यक है। यदि पिंगला प्रवाहित हो रही है, तो शरीर अशांत तथा अति सक्रियता बनी रहेगी, यदि इड़ा प्रवाहित हो रही है, तो मन अति क्रियाशील और बेचैन रहता है। जब सुषुम्ना प्रवाहित होती है, तब कुंडलिनी जाग्रत होकर चक्रों को भेदती हुई ऊपर की ओर 
चढ़ती है।

प्राण
प्राण का अर्थ है जीवनी शक्ति। मनीषियों ने इस जीवनी शक्ति को स्थूल रूप में श्वास से संबद्ध माना है। श्वास के माध्यम से ही मनुष्य के शरीर में प्राण तथा जीवन का संचार होता है। मानव शरीर में 5 प्रकार की वायु या प्राण हैं-अपान, समान, प्राण, उदान और व्यान। अपान गुदा प्रदेश में स्थित है, समान नाभि प्रदेश में स्थित है, प्राण की स्थिति हृदय क्षेत्र में, उदान गले के क्षेत्र में स्थित है और व्यान पूरे शरीर में व्याप्त है।

हठयोग ग्रंथों में प्राणायाम के अभ्यास की चर्चा की गई है। इनके अभ्यास से प्राण यानी ऊर्जा शक्ति पर नियंत्रण या नियमन संभव हो जाता है। प्राण वायु को अपान वायु में तथा अपान को प्राणवायु में हवन करने से भी कुंडलिनी शक्ति जागृत होकर सुषुम्ना के अंदर प्रवेश करती है और चक्रों का भेदन करती हुई सहस्रार चक्र में स्थित कराने में सहायक सिद्ध होती है।  कुंडलिनी जागृत करने हेतु मुख्य प्राणायाम हैं-सूर्यभेदी, उज्जायी, शीतली, भस्त्रिका, भ्रामरी, मूर्च्छ, प्लाविनी, नाड़ीशोधन आदि।





Comments

Post a Comment

Our Top 5 Popular Posts

Qualities and importance of a Good Yoga Teachers एक अच्छे योग शिक्षकों की योग्यता और असमानता

Qualities of a Good Yoga Teachers  एक अच्छे योग शिक्षकों की योग्यता और असमानता Introduction: Taking on the role of being a yoga teacher is a beautiful path in life. Traditionally, yoga was only taught directly from teacher to student. Preparing yourself to hold space for others is a significant responsibility, and requires a sincere dedication. परिचय: एक योग शिक्षक की भूमिका निभाना जीवन में एक खूबसूरत रास्ता है। परंपरागत रूप से, योग केवल शिक्षक से छात्र को सीधे सिखाया जाता था। दूसरों के लिए जगह बनाने के लिए खुद को तैयार करना एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है, और इसके लिए एक समर्पण की आवश्यकता है।  THE IMPORTANCE OF A TEACHER IN YOGA The guru is very important. The word guru means ‘one who dispels the darkness of ignorance’. He is needed because in yoga there are several different methods that work towards the same goal of perfection. Yoga science has two aspects - theoretical and practical. Theory can be learned through books and scriptures but a perfect ...

COVID19 Novel Corona Virus SOME RESULT ORIENTED TIPS TO BOOST YOUR IMMUNITY

यह जरूरी नहीं है कि आप इस लेख की सारी विधियों को करें जरूरी यह है कि आप जो कुछ भी इस लेख को पढ़कर कर सकते हैं उसे करें Yoga Tips /Also search and follow Shatkarma for good results from this blog in the search box See the video of kal neti kriya this kriya is very important Short Video of jalneti kriya YouTube link Do Rubber Neti Kriya this is video link must see See Sutra neti kriya video link this is optional kriya See the video of sheetkrama Kapalbhati for mucus Cleansing Sheetkrama kapalbhati youtube shorts video link Sheetkrama kapalbhati by gyanviyoga Types of kapalbhati video link Shuddhi kriya video link ALL NETI KRIYA IS VERY IMPORTANT AND EFFECTIVE JAL NETI जल नेति Asanas Doing Yoga Asanas benefits you with a flexible & healthy body. Daily yoga practice will help stretch and tone your body muscles. Drains your lymphs and boosts immunity. Pranayama Pranayama is the formal practice of controlling the breath. It is very beneficial as it purifies your mind. Pranayama can a...

3 bandhas yoga 3 बंध योग महाबंध mahabandh yoga

The Three Bandhas   तीन बन्ध When the Yogi has perfected his Asanas he should practice Pranayama according to the instructions of his master. With controlled senses he should nourish himself with moderation. (Chapter 5, verse1, Hatha Yoga Pradipika). जब योगी ने अपने आसनों को सिद्ध कर लिया है तो उसे अपने गुरु के निर्देशों के अनुसार प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। नियंत्रित इंद्रियों के साथ उन्हें संयम के साथ खुद को पोषण देना चाहिए। (अध्याय 5, श्लोक 1, हठ योग प्रदीपिका)।                                               MOOLA BANDHA AND UDDYAN BANDHA PIC. Bandha means catching hold of, control. It can mean a posture where certain organs or parts of the body are contracted and controlled. There are three main Bandhas which are important to Pranayama; Mula Bandha, Uddiyana Bandha and Jalandhara Bandha. Breath can be retained with the lungs full or ...

NAULI KRIYA नौली क्रिया

                                    Nauli Kriya                                       नौली क्रिया                                                       By साधक विपिन योगाचार्य  अनुक्रम 15.5-  नौलि (लौलिकी) षटकर्मो में शुद्धिकरण की चौथी प्रक्रिया है। पिछली इकार्इ में धौति के प्रकारों में आपने अग्निसार क्रिया का अध्ययन किया। नौलि क्रिया अग्निसार का ही एक प्रकार है या यूँ कहे कि नौलि क्रिया अग्निसार अन्त: धौति की उच्च अभ्यास है। जठराग्नि को बढ़ाने वाली इस क्रिया में उदरगत मॉसपेशियों की मालिश होती है या पेट की समस्त मांसपेशियों की क्रियाशीलता त्वरित गति से बढ़ती है। महर्षि घेरण्ड ने नौलि की क्रियाविधि व लाभों को समझाते हुए कहा है। अमन्दहवेगेन तुन्द्...

SHATKARMA षट्कर्म

SHATKARMA What to do first Shatkarma kriya video link Shuddhikarak Kriya Video link short Natural Detoxification link Sutra Neti kriya video Jal neti kriya link Ghrat neti kriya link Rubberneti kriya link Sheetkrama kapalbhati youtube video link Vyutkrama kapalbhati youtube video link Shatkarma mei Neti kriya video षट्कर्म: षट्कर्म (अर्थात् 'छः कर्म') हठयोग में बतायी गयी छः शोधन क्रियाएँ हैं। हमारे शरीर में तीन तरह के दोष होते है-वात, पित्त और कफ। योग में कई ऐसीशोधन क्रियाएं हैं, जिनके नियमित अभ्यास से हमें इन दोषों में किसी की अधिकता या दोष विकृति से होने वाली व्याधियो से रोग मुक्ति मिल जाती है। षटकर्म क्रिया के अंतर्गत नेति, कपालभांति, धोति, नौलि, बस्तऔर त्राटक क्रिया आती हैं। जानिए कैसे की जाती हैं ये शोधन क्रियाएं और क्या हैं इनके फायदे। लेकिन ये क्रियाएं बहुत जटिल होती हैं इसलिए इनका अभ्यास प्रशिक्षित-अनुभवी योगाचार्य के निर्देशन में ही करें। षटकर्म द्वारा संपूर्ण शरीर की शुद्धि होती है देह निरोग रहता है। नेति, धौति, बस्ति , नौली, त्राटक और कपाल भाति ये षटकर्म कहलाते हैं।...