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COVID19 Novel Corona Virus SOME RESULT ORIENTED TIPS TO BOOST YOUR IMMUNITY







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ALL NETI KRIYA IS VERY IMPORTANT AND EFFECTIVE



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Asanas

Doing Yoga Asanas benefits you with a flexible & healthy body. Daily yoga practice will help stretch and tone your body muscles. Drains your lymphs and boosts immunity.

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Pranayama

Pranayama is the formal practice of controlling the breath. It is very beneficial as it purifies your mind. Pranayama can act as one of the simplest and effective ways to boost immunity.

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Meditation

Meditation is the best way to eliminate negative thoughts, worries & all those factors which are a barrier to our happiness. Meditation improves the immune system, reduces blood pressure.

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Mantra Chanting

The vibrations arising from chanting this mantra aligns all your internal energy chakras with certain lymph nodes. This in turn helps strengthen your immune system.

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Mudra Bandha

Treated under the heading of "Mudra", "Bandha" is a term for body locks in Hatha Yoga. Select the Mudra Bandha which suits you & practice regularly to get rid of many diseases.

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Ayurveda Teaching

Almost everyone is aware of the benefits of Ayurveda.(Ancient medicine) herbs such as tulsi, cinnamon, black pepper,(dry ginger) and raisins and regular yoga are strong aids to increase the body's immunity against harmful viruses.

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Kriyas/Shatkarma

Kriyas and Shatkarmas are the cleansing techniques which purify your body.The six Shatkarmas Techniques and Benefits of Shatkarmas Techniques: 1.Neti 2.Dhauti 3.Nauli 4.Basti 5.Kapalbhati 6.Trataka

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Yoga Nidra

Both deep thinking and yoga nidra help activate the relaxation response and improve the functioning of your nervous system and endocrine system, which affects your hormones(chemicals produced by the body).


























सादा देशी / सरसों तेल-

हमारे देश के हिंदी भाषी क्षेत्रों में सरसों के तेल को देसी तेल के नाम से जाना जाता है। देसी तेल तासीर में गर्म होता है। साथ ही इसमें ऐसी कई खूबियां होती हैं, जो चोट के घाव भरने, त्वचा पर संक्रमण फैलने और कई अन्य तरह की बीमारियों से रक्षा करती हैं। यहां जानिए किस तरह कोरोना संक्रमण से बचाने में भी सरसों का तेल खासा उपयोगी है...
-सादा देसी तेल यानी सरसों का प्योर तेल जिसमें आपने किसी अन्य हर्ब को ना मिलाया हो। यदि आप नियमित रूप से रात को सोने से पहले इस तेल सेअपने पूरे शरीर की मसाज करते हैं तो आपकी त्वचा की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
खासतौर पर बरसात के समय में पैर के नाखून, पैर की उंगलियों के बीच या पैर की त्वचा पर पनपने वाले इंफेक्शन से बचाने में सरसों का तेल बहुत अधिक प्रभावी है।
सरसों का तेल नाक में लगाना/भांप लेना
रात को सोने से पहले यदि आप सरसों के तेल को नाक में लगाएंगे तो जुखाम, खांसी, गले में दर्द, नाक का बहना, कान की खुजली इत्यादि सभी समस्याओं में आपको राहत मिलेगी।
कोरोना संक्रमण के समय में सरसों का तेल नाक में लगाने से यह तेल नाक के जरिए कोरोना वायरस को आपके शरीर के अंदर प्रवेश नहीं करने देगा। क्योंकि इस तेल में मौजूद प्राकृतिक चिपचिपाहट का गुण वायरस को अपने ऊपर चिपका लेता है और अपनी गर्म तासीर के चलते वायरस को खत्म कर देता है। इसके साथ ही साथ आप दिन में दो बार नाक से और मुंह से भांप अंदर खींचें, आपको अंदर खींचने के लिए आपको कोई बर्तन या इस्टीमर या प्रेशर कुकर का सहारा लेना होगा इस बर्तन में आपको 20 पत्ते अमरूद के और एक चम्मच अजवाइन मिलाकर इसके बाप को नाकिया मुंह के मार्ग से बारी बारी से अपने अंदर प्रवेश कर आना होगा दिन भर में 2 बार 15:15 मिनट का लेने से बहुत अधिक लाभ होता है, खांसी की समस्या में अमरूद के पत्ते को थोड़ा सेंधा नमक मिलाकर चबाने से धीमे धीमे खासी भी ठीक हो जाती है, यदि बुखार है तो पेट पर सूती पट्टी को गीला करके निचोड़ कर उसे आधे घंटे तक दिन में दो से तीन बार पेट पर लगाते रहे एवं पूरे शरीर में सरसों का तेल लगाने के बाद शरीर को किसी पॉलिथीन से या कंबल से या रेन कोट से गले तक ढक लें सर पर एक गीली टॉवल निचोड़ कर रखें और एक गिलास पानी पीकर सुबह की 15 मिनट की धूप लेने से शरीर के अंदर का पसीना बाहर निकल जाता है जिससे कि जल्दी बुखार ठीक होने लगता है।
शरीर पर मालिश करना
-सरसों के शुद्ध तेल में ऐंटिफंगल, ऐंटिबैक्टीरियल और ऐंटिवायरल प्रॉपर्टीज पाई जाती हैं। ये सभी तत्व हमारे शरीर को इन पेथोजेन्स यानी वायरस, बैक्टीरिया और फंगस से होनेवाले नुकसान से बचाती हैं।
नियमित रूप से शरीर पर सरसों के तेल की पूरे शरीर पर मालिश करने से अनचाहे दाने, फुंसी, खुजली, दाद या त्वचा के रुखेपन का सामना नहीं करना पड़ता है।

shatkarma/षट्कर्म- 

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किसी के मन में सवाल हो सकता है कि यह इतना ही महत्वपूर्ण योगकर्म है तो भारत के योगियों ने इसके बारे में कुछ क्यों नहीं कहा? इसकी वजह यह हो सकती है कि चूंकि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले अन्य योगाभ्यासों से भी लगभग ऐसे नतीजे मिल जाते हैं, इसलिए षट्कर्म की इस क्रिया पर किसी का ध्यान नहीं गया होगा। भारत में कोविड-19 का संक्रमण फैलने के बाद देश के योगियों का फोकस रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के उपायों पर था। इसलिए विज्ञान की कसौटी पर बार-बार कसी गई नाड़ी शोधन या अनुलोम विलोम, कपालभाति, भस्त्रिका, भ्रामरी आदि प्राणायाम की क्रियाओं के अभ्यासों के साथ ही गिलोय और तुलसी के नियमित सेवन करने की सलाह दी जाती रही।
जहां तक वैज्ञानिक शोधों की बात है तो केवल कुंजल क्रिया पर शोध कार्य कम ही हुए हैं। षट्कर्म के कई आयामों पर कई शोध किए गए।यह क्रिया कफ व पित्त दोषों से मुक्ति के लिए बेहद प्रभावशाली क्रिया है।
नेति, धौति, बस्ती, कपालभाति, नौलि और त्राटक षट्कर्म की छह क्रियाएं हैं।
नेति, धौति, बस्ती,कफ, पित्त व आमाशय की समस्याओं से मुक्ति दिलाकर शरीर के विकारों को दूर करती है। दूसरी ओर कपालभाति, नौलि और त्राटक क्रियाएं मन-मस्तिष्क के प्रबंधन में अहम् भूमिका निभाती हैं। ये मस्तिष्क में उत्पन्न बीटा तरंगों को शांत करती हैं । इससे अल्फा, डेल्टा और थीटा तरंगे मन को स्वस्थ्य एवं निर्मल बनाती हैं। अवसाद से मुक्ति मिलती है। साथ ही उच्च रक्तचाप, हृदय रोग और अन्य रोगों से लड़ने में मदद पहुंचती है। षट्कर्म के संपूर्ण प्रभावों पर आज के संदर्भ में नजर डालें तो कहना होगा कि कोई भस्त्रिका के साथ षट्कर्म साधना भी ठीक से कर ले तो मौजूदा संकट के लिहाज से बात बन जा सकती है।हठयोग में इतना महत्वपूर्ण हो चुका षट्कर्म ऐतिहासिक रूप से योगशास्त्र का हिस्सा नहीं था। न तो हठयोग के प्रवर्तक गोरक्षनाथ ने और न ही राजयोग के प्रवर्तक महर्षि पतंजलि ने षट्कर्म को योगशास्त्र में स्थान दिया था। कुछ योग शास्त्रों और तंत्र शास्त्रों में षट्कर्म की अलग-अलग क्रियाओं की चर्चा जरूर की गई थी। पहली बार महर्षि घेरंड ने अपनी घेरंड संहिता में षट्कर्म को हठयोग का हिस्सा बनाया था।















Do these Yoga regularly for Better immunity System

PRANAYAM प्राणायाम




भस्त्रिका का शब्दिक अर्थ है धौंकनी अर्थात एक ऐसा प्राणायाम जिसमें लोहार की धौंकनी की तरह आवाज करते हुए वेगपूर्वक शुद्ध प्राणवायु को अन्दर ले जाते हैं और अशुद्ध वायु को बाहर फेंकते हैं।
 प्राणायाम जीवन का रहस्य है। श्वासों के आवागमन पर ही हमारा जीवन निर्भर है और ऑक्सीजन की अपर्याप्त मात्रा से रोग और शोक उत्पन्न होते हैं। प्रदूषण भरे महौल और चिंता से हमारी श्वासों की गति अपना स्वाभाविक रूप खो ही देती है जिसके कारण प्राणवायु संकट काल में हमारा साथ नहीं दे पाती।
 विधि : सिद्धासन या सुखासन में बैठकर कमर, गर्दन और रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए शरीर और मन को स्थिर रखें। आंखें बंद कर दें। फिर तेज गति से श्वास लें और तेज गति से ही श्वास बाहर निकालें। श्वास लेते समय पेट फूलना चाहिए और श्वास छोड़ते समय पेट पिचकना चाहिए। इससे नाभि स्थल पर दबाव पड़ता है।
 इस प्राणायाम को करते समय श्वास की गति पहले धीरे रखें, अर्थात दो सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर मध्यम गति से श्वास भरें और छोड़ें, अर्थात एक सेकंड में एक श्वास भरना और श्वास छोड़ना। फिर श्वास की गति तेज कर दें अर्थात एक सेकंड में दो बार श्वास भरना और श्वास निकालना। श्वास लेते और छोड़ते समय एक जैसी गति बनाकर रखें।
 वापस सामान्य अवस्था में आने के लिए श्वास की गति धीरे-धीरे कम करते जाएं और अंत में एक गहरी श्वास लेकर फिर श्वास निकालते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इसके बाद योगाचार्य पांच बार कपालभाती प्राणायाम करने की सलाह देते हैं।
 सावधानी : भस्त्रिका प्राणायाम करने से पहले नाक बिल्कुल साफ कर लें। भ्रस्त्रिका प्राणायाम प्रात: खुली और साफ हवा में करना चाहिए। क्षमता से ज्यादा इस प्राणायाम को नहीं करना चाहिए। दिन में सिर्फ एक बार ही यह प्राणायाम करें। प्राणायाम करते समय शरीर को न झटका दें और ना ही किसी तरह से शरीर हिलाएं। श्वास लेने और श्वास छोड़ने का समय बराबर रखें।
 नए अभ्यासी शुरू में कम से कम दस बार श्वास छोड़ तथा ले सकते हैं। जिनको तेज श्वास लेने में परेशानी या कुछ समस्या आती है तो प्रारंभ में श्वास मंद-मंद लें। ध्यान रहे कि यह प्राणायाम दोनों नासिका छिद्रों के साथ संपन्न होता है। श्वास लेने और छोड़ने को एक चक्र माना जाएगा तो एक बार में लगभग 25 चक्र कर सकते हैं।

कपालभाति प्राणायाम/क्रिया


 

 कपालभाति प्राणायाम दिन में सुबह के समय, सूर्योदय के पहले करने पर अधिक लाभ होता है। इस प्राणायाम अभ्यास को नया नया शुरू करने वाले व्यक्ति को दो से तीन मिनट में थकान महसूस हो सकती है| परंतु एक या दो हफ्तों के अभ्यास के बाद कोई भी सामान्य व्यक्ति लगातार पांच मिनट से अधिक समय तक कपालभाति प्राणायाम करनें के लिए सक्षम हो जाता है।

  • कपालभाति प्राणायाम हमेशा शुद्ध वातावरण में ही करना चाहिए। पद्मासन में बैठ कर इस आसान को करने पर अधिक लाभ होता है।
  • कपालभाति प्राणायाम करने के लिए किसी अच्छी शांत और स्वच्छ जगह का चयन करके, वहाँ पर आसन बिछा कर पद्मासन में बैठ जाए।
  • अब आगे कपालभाति प्राणायाम की शुरुआत करने के लिए श्वास सामान्य गति से शरीर के अंदर की और लेनी होती है। और तेज़ गति से बाहर निकालनी होती है। यह पूरी प्रक्रिया एक रिद्म में होनी चाहिए।
  • प्रत्येक सेकंड में एक बार पूरी सांस को तेजी के साथ नाक से बाहर छोड़ें, इससे पेट अन्दर चला जाएगा। कपालभाती में प्रत्येक सेकंड में एक बार सांस को तेजी से बाहर छोड़ने के लिए ही प्रयास करना होता है| साँस को छोड़ने के बाद, सांस को बाहर न रोककर बिना प्रयास किये सामान्य रूप से सांस को अन्दर आने दें| प्रत्येक सेकंड में साँस को तेजी से बाहर छोड़ते रहे| इस हिसाब से एक मिनट में सांठ बार और कुल पाँच मिनट में तीनसौ बार आप वायु (सांस) बाहर फैंकनें की क्रिया करें। (थकान महसूस होने पर बीच बीच में रुक कर विश्राम अवश्य लेते रहें)।
  • शुरुआत में अगर एक मिनट में साठ बार सांस बाहर फैंकने में थकान हों, तो एक मिनट में तीस से चालीस बार सांस बाहर निकालें और अभ्यास बढ्ने के साथ साथ गति को प्रति मिनट साठ सांस तक ले जायें।
  • कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास लंबे समय तक सही तरीके से करने पर इसकी अवधि पांच मिनट से पंद्रह मिनट तक बढ़ाई जा सकती है। यानी की पांच-पांच मिनट के तीन चरण।
  • AIDS, कैंसर, एलर्जी, टीबी, हेपीटाइटस और दूसरी ऐसी जटिल बीमारी के रोगी को कपालभाति प्राणायाम दिन में तीस मिनट तक करना चाहिए। और अगर ऐसा रोगी दिन में सुबह और शाम दोनों समय कपालभाति प्राणायाम तीस तीस मिनट कर सके तो और भी बहेतर होगा।
  • स्वस्थ व्यक्ति कपालभाति प्राणायाम को प्रति दिन एक ही बार करे तो भी उसे बहुत अच्छे शारीरिक और मानसिक लाभ होता है।

उज्जायी प्राणायाम

1- सबसे पहले किसी समतल और स्वच्छ जमीन पर चटाई बिछाकर उस पर पद्मासन, सुखासन की अवस्था में बैठ जाएं।
2- अब अपनी दोनों नासिका छिद्रों से साँस को अंदर की ओर खीचें इतना खींचे की हवा फेफड़ों में भर जाये।
3- फिर वायु को जितना हो सके अंदर रोके।
4- फिर नाक के दायें छिद्र को बंद करके, बायें छिद्र से साँस को बहार निकाले।
5- वायु को अंदर खींचते और बाहर छोड़ते समय कंठ को संकुचित करते हुए ध्वनि करेंगे, जैसे हलके घर्राटों की तरह या समुद्र के पास जो एक ध्वनि आती है।

अनुलोम विलोम

अनुलोम विलोम यानी कि नाड़ी शोधन प्राणायाम जो कि हमारे शरीर में शुद्ध वायु का संचार करता है और शरीर मे उर्जा प्रदान करता है। आज हम आपको बताने वाले हैं अनुलोम विलोम के दस मुख्य फायदों के बारे में।

अनुलोम विलोम के फायदे

1. इस प्रणायाम को करने से मन को शांत और स्थिर करने में सहायता मिलती है। यह मन को शांत करके शान्ति का अहसास कराता है।
2. अनुलोम विलोम हमारी श्वास प्रणाली को सुचारु करता है और इसे एक लय में लेकर आता है जिससे शरीर स्वस्थ होता है और सांस के रोग भी नहीं होते हैं।
3. यह फेफड़ों में फांसी विषैली गेसों को निष्काषित करता है। इससे फेफड़े स्वस्थ होते हैं और पूरी मात्रा में हवा ले पाते हैं। ताज़ी हवा के आने से शरीर ताज़ा महसूस करता है।
4. मानसिक तनाव को कम करने में भी अनुलोम विलोम बहुत ही फायदेमंद होता है। अगर नित्य रूप से इसे किया जाए, तो यह रक्त संचार को ठीक करके मानसिक तनाव को भी कम करता है।
5. यह मस्तिष्क में दोनों, बाए और दाएं, हिस्से में संतुलन बनाए रखने में भी सहायता करता है। इससे  व्यक्ति की आंकिक और तार्किक क्षमता में वृद्धि होती है, और कार्यकुशलता भी आती है।
6. यह नाड़ियों का शोधन करता है जिससे कि सारा शरीर ठीक रूप से कार्य करता है। इसका एक बड़ा फायदा यह भी है कि नाड़ियों के रोगों से यह रक्षा करता है।
7. शरीर के तापमान को स्थिर रखने में यह सहायक है और अचानक से यह शरीर के तापमान को कम या ज्यादा नहीं होने देता है।
8. शरीर के बेकार और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर करने में यह प्रणायाम बहुत सहायक होता है।  यह इन पदार्थों को शरीर से बाहर करके शरीर को शुद्ध करता है।
9. इसे नियमित करने से त्वचा में चमक और चेहरे पर तेज बढ़ता है जिससे कि आपकी खूबसूरती बढ़ जाती है और आप अधिक आकर्षक लगने लगते हैं।
10. वजन घटाने और शरीर की चर्बी को कम करने में भीअनुलो म विलोम असरदार होता है और इसे करने से आप अधिक पुष्ट होते हैं और वजन भी कम होता है।
11. नित्य अनुलोम विलोम करिए, धीरे-धीरे आपके खर्राटे कम हो जाएँगे। यानि कि दूसरों के लिए भी फायदेमंद!
अगर आप व्यायाम / योग के लिए अधिक समय नहीं निकाल पा रहे हैं, तो कम से कम नित्य 10-15 मिनट निकालकर अनुलोम विलोम जरूर कर लें।













Comments

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