षट्कर्म:
षट्कर्म (अर्थात् 'छः कर्म') हठयोग में बतायी गयी छः शोधन क्रियाएँ हैं।
हमारे शरीर में तीन तरह के दोष होते है-वात, पित्त और कफ। योग में कई ऐसीशोधन क्रियाएं हैं, जिनके नियमित अभ्यास से हमें इन दोषों में किसी की अधिकता या दोष विकृति से होने वाली व्याधियो से रोग मुक्ति मिल जाती है। षटकर्म क्रिया के अंतर्गत नेति, कपालभांति, धोति, नौलि, बस्तऔर त्राटक क्रिया आती हैं। जानिए कैसे की जाती हैं ये शोधन क्रियाएं और क्या हैं इनके फायदे। लेकिन ये क्रियाएं बहुत जटिल होती हैं इसलिए इनका अभ्यास प्रशिक्षित-अनुभवी योगाचार्य के निर्देशन में ही करें।
षटकर्म द्वारा संपूर्ण शरीर की शुद्धि होती है देह निरोग रहता है। नेति, धौति, बस्ति , नौली, त्राटक और कपाल भाति ये षटकर्म कहलाते हैं।
नेति : नेति के तीन प्रकार के होते हैं -
श्वसन संस्थान के अवयवों की सफाई के लिए इसे प्रयुक्त किया जाता है। इसे करने की तीन विधियाँ हैं:
(अ) सूत्र नेती: एक मोटा और कोमल धागा जो नासिका छिद्र में जा सके लीजिए। इसे पानी में भिगो लें और इसका एक छोर नासिका छिद्र में डाल कर मुँह से बाहर निकालें। इससे नाक और गले की आंतरिक सफाई होती है। आँख, दाँत और कान स्वस्थ्य बनते हैं।
इसका अभ्यास गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
(ब) जल नेती : दोनों नासिका से पानी पीएँ। एक ग्लास पानी भर लें। झुक कर नाक को पानी में डुबाएँ और धीरे-धीरे पानी अंदर जाने दें। नाक से पानी को खींचना नहीं है। ऐसा करने से आपको कुछ परेशानी का अनुभव होगा। गले की सफाई हो जाने के बाद आप नाक से पानी पी सकते हैं। ऊपर बताए सभी लाभ इससे प्राप्त होते हैं।
यह क्रिया प्रात:काल की जाती है। इसे करने के लिए सबसे पहले एक टोंटी वाला यानी केतलीनुमा लोटे में गुनगुना पानी लें। अब पैरों के बल कागासन में नीचे बैठें। इसके बाद नाक के एक छेद यानी नासारंध्र में लोटे की टोंटी का मुंह लागकर पानी अंदर डालें। ऐसा करते हुए गर्दन को थोड़ा नीचे की ओर झुकाएं। साथ ही सांस भी लेते रहें। इस क्रिया में एक नासारंध्र से पानी अंदर डाला जाता है और दूसरे से उसे बाहर निकाला जाता है। एक नासारंध्र से ऐसा करने के बाद दूसरे नासारंध्र से भी इसी प्रकार पानी लेकर दूसरी ओर से निकाला जाता है। ऐसा करने से सांस की नली साफ होती है।
इस क्रिया के द्वारा मस्तिष्क से जुड़े सभी विकारों को ठीक किया जा सकता है।
(स) कपाल नेती : मुँह से पानी पी कर नाक से निकालें।: एक मोटा और कोमल धागा जो नासिका छिद्र में जा सके लीजिए। इसे पानी में भिगो लें और इसका एक छोर नासिका छिद्र में डाल कर मुँह से बाहर निकालें। इससे नाक और गले की आंतरिक सफाई होती है। आँख, दाँत और कान स्वस्थ्य बनते हैं।
इसका अभ्यास गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
धौति : धौति (धोना) बारह प्रकार की होती है
1. वातसार धौती 2. वारिसार धौती 3. बहिव्सार धौती 4.बहिष्कृत धौती 5.दंत मूल धौती 6.जिव्हामूल धौती
7.कर्णरन्ध्र धौती 8.कपाल रन्ध्र धौती 9. दंड धौती 10. वमन धौती 11. वस्त्र धौती 12. मूलशोधन धौतीषटकर्म क्रिया
इस क्रिया में मुंह को चोंच की तरह बनाकर अंदर हवा ली जाती है। यानी जिस तरह पानी पिया जाता है वैसे ही इस क्रिया में हवा पी जाती है। हवा पेट में लेने के बाद पेट को गोल-गोल चारों ओर हिलाया जाता है। इससे हमारी आंतें मजबूत बनती हैं और पेट के रोग दूर होते हैं।
बस्ति
यह क्रिया दो प्रकार की होती है-जल बस्ति और स्थल बस्ति। जल बस्ति में गुदा के अंदर जल का आकुंचन किया जाता है। इस क्रिया में बड़ी आंत में मौजूद मल को पानी की मदद से बाहर निकाला जाता है। जबकि स्थल बस्ति में अश्विनी मुद्रा में गुदामार्ग का आकुंचन किया जाता है। इस क्रिया में गुदा मार्ग से वायु अंदर लेकर उसे बाहर निकाला जाता है। इसे पवन बस्ति भी कहते हैं। इस क्रिया से पाचन क्रिया रोग मुक्त होती है और भूख बढ़ती है।
यह गुदा की सफाई के लिए प्रयुक्त किया जाता है। साधक तेल लगी हुई एक नलिका अपनी गुदा में डालकर घुटने तक भरे किसी साफ पानी के बड़े बर्तन में बैठकर उड्डीयानबंध लगाता है। जब वह उड्डीयानबंध खोलता है तो पानी उसकी गुदा की ओर बड़ी आँत में धीरे-धीरे भरने लगता है।
इसके बाद जब वह पुन: उड्डीयानबंध लगाता है तो उसके मल द्वार से पानी धीरे-धीरे बाहर निकलने लगता है। इससे बड़ी आँत और गुदा की सफाई हो जाती है तथा इनसे संबंधित रोग दूर होते हैं। एनिमा लेने से भी यह लाभ प्राप्त होता है।
एक दूसरे प्रकार की बस्ती भी है जिसे शुष्क बस्ती अथवा पवन बस्ती कहते हैं। बहनीसार धौती में जैसे बताया गया है उसी प्रकार लेट जाएँ। मल द्वार को अनेक बार संकुचित कर ढीला छोड़े। इससे शरीर की पाचन शक्ति बढ़ती है तथा शरीर मजबूत बनता है।
नौली :
यह क्रियाओं में सर्वश्रेष्ठ है। यह पेट के लिए महत्वपूर्ण व्यायाम है। इससे भूख बढ़ती है। यकृत, तिल्ली और पेट से संबंधित अनेक बीमारियों से मुक्ति मिलती है। इसके अभ्यास से प्रखर स्वास्थ्य प्राप्त होता है।
1. उड्डियान बंध : मुँह से बल पूर्वक हवा निकालकर नाभी को अंदर खीचें यह उड्डीयानबंध है।
2. वामननौली : जब उड्डियानबंध पूरी तरह लग जाय तो माँसपेशियों को पेट के बीच में छोड़े। पेट की य माँसपेशियाँ एक लम्बी नली की तरह दिखाई पड़ेगी। इन्हें बाएँ ले जाएँ।
3. दक्षिण नौली : इसके पश्चात इसे दाहिनी ओर ले जाएँ।
4. मध्यमा नौली : इसे मध्य में रखें और तेजी से दाहिने से बाएँ और बाएँ से दाहिनी ओर ले जाकर माँसपेशियों का मंथन करें।
त्राटक :
जितनी देर तक आप बिना पलक गिराए एक बिंदु पर देख सकें देखते रहिए। इसके बाद आँखें बंद कर लें। कुछ समय तक इसका अभ्यास करें। आप की एकाग्रता बढ़ेगी।
त्राटक के अभ्यास से आँखों और मस्तिष्क में गरमी बढ़ती है, इसलिए इस अभ्यास के तुरंत बाद नेती क्रिया का अभ्यास करना चाहिए।
त्राटक के अभ्यास से अनेक प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती है। सम्मोहन और स्तंभन क्रिया मं त्राटक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। स्थिर आँखें स्थिर चित्त का परिचायक है। आँख मन का दर्पण है। इस का नियमित अभ्यास कर मानसिक शांति और निरभ्रता का आनंद लें।
कपालभाति:
इसमें सिद्धासन या पद्मासन में सीधे बैठकर हाथ की प्राणायाम मुद्रा बनाई जाती है। इसके बाद सांस लेकर जोर से झटके के साथ बाहा निकाला जाता है। ऐसा करते हुए पेट पहले बाहर की ओर जाता है और फिर उसे भीतर की ओर खींचकर रीढ़ की हड्डी की ओर लगाया जाता है। यह क्रिया कई बार दोहराई जाती है। इससे शरीर में मौजूद बढ़ी हुई कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बाहर निकलती है और शरीर के अंदरूनी अंगों तक ऑक्सीजन की सप्लाई होती है। इस क्रिया को बार-बार बलपूर्वक करना वातकर्म कपालभाति कहलाता है। इसके अभ्यास से कफ संबंधी दोष भी दूर होते हैं।
SHATKARMA
Shatkarma (meaning 'six deeds') is the six refinement actions described in Hatha Yoga.
There are three types of doshas in our body - Vata, Pitta and Kapha. There are many such corrective actions in yoga, whose regular practice helps us get rid of diseases from any excess or defect deformity in these doshas.
Neti, Kapalbhanti, Dhoti, Nauli, Basta and Trataka are covered under the action of Shatkarma. Know how these rectification actions are done and what are their benefits. But these actions are very complex, so practice them under the direction of trained-experienced yogacharya.
The purification of the entire body is done by shakarma, the body remains healthy. Neti, dhoti, basti, nauli, trataka and kapal bhati are called these shakkarma.
Neti: There are three types of neti -
It is used for cleaning the contents of respiratory institution. There are three methods of doing this:
(A) Sutra Neti: Take a thick and soft thread that can go into the nasal cavity. Soak it in water and put one end of it in the nasal cavity and take it out of the mouth. This causes internal cleansing of the nose and throat. Eye, teeth and ears become healthy.
It should be practiced under the guidance of the Guru.
(B) Jal Neti: Drink water from both nostrils. Fill a glass of water. Bend your nose in the water and slowly let the water in. Do not draw water from the nose. By doing this you will experience some trouble. After cleaning the throat you can drink water from the nose. All the benefits mentioned above are derived from it.
This action is done in the morning. To do this, first of all take lukewarm water in a spout, ie, a kettle-lined lotus. Now sit down on your feet in Kagasan. After this, pour water inside the mouth of a bottle of a bottle of nose in the nose hole. While doing this, tilt the neck slightly down. Also keep breathing.In this activity, water is poured in from one nasal cavity and it is taken out from the other. After doing this from one side of the nose, water is extracted from the other side in the same way from the other side. By doing this, the windpipe gets cleaned.All disorders related to the brain can be cured by this action.
(C) Kapal Neti: Remove from the nose by drinking water from the mouth.: Take a thick and soft thread that can go into the nasal cavity. Soak it in water and put one end of it in the nasal cavity and take it out of the mouth. This causes internal cleansing of the nose and throat. Eye, teeth and ears become healthy.
It should be practiced under the guidance of the Guru.
Dhouti: There are twelve types of dhoti (washing).
1. Vatsar Dhoti 2. Warisar Dhoti 3. Bahivarsar Dhoti 4. Bahishkrit Dhoti 5. Dant Mool Dhati 6. Jiwamool Dhoti
7.Karnarandhra Dhoti 8.Kapal Randhra Dhoti 9.Dand Dhoti 10. Voman Dhoti 11. Clothing Dhatu 12. Moolashodhan Dhotishatkram Kriya
In this action, the air is taken inside by making the mouth like a beak. That is, the way water is drunk, the air is drunk in this action. After taking air in the stomach, the stomach is moved round and round. This makes our bowels strong and stomach diseases disappear.
Settlement
There are two types of this action - water settlement and land settlement. In the water slab, water is drawn inside the anus. In this activity, the feces present in the large intestine are taken out with the help of water. Whereas in the place settlement Gudamarga is done in Ashwini mudra. In this activity, air is taken out from the anus through the anal passage. It is also called Pawan Basti. By this action the digestive system gets rid of disease and increases appetite.It is used for rectal cleansing. The seeker inserts a tube containing oil into his anus and sits in a big pot of clean water filled up to the knee and applies the udhiyanbandh. When he opens the Uddyayanbandh, water slowly starts filling up the large intestine towards his anus.
After this, when he again puts the uddyayanbandh, the water slowly starts coming out from his stool door. This cleanses the large intestine and anus and cures diseases related to them. This benefit is also obtained by taking enema.
There is also a second type of habitation which is called dry habitation or wind habitation. Lie down as told in Bahnisar Dhoti. The stool is compressed several times and left loose. This increases the digestive power of the body and makes the body strong.
Nauli:
It is best in actions. This is an important exercise for the stomach. This increases appetite. Many diseases related to liver, spleen and stomach are relieved. Practical health is attained by its practice.
1. Udian Bandha: Remove the air forcefully from the mouth and pull the Nabhi inside.
2. Vamanauli: When the udhiyanabandha is completely done, leave the muscles in the middle of the stomach. The abdominal muscles will look like a long tube. Move them to the left.
3. South Nauli: After that move it to the right side.
4. Madhyama Nauli: Keep it in the middle and quickly churn the muscles by moving from right to left and from left to right.
Tratak:
Keep watching for as long as you can at a single point without winking. After this, close your eyes. Practice this for some time. Your concentration will increase.The practice of trataka increases the heat in the eyes and brain, so neti kriya should be practiced immediately after this practice.
The practice of trataka gives many types of siddhis. The hypnosis and erectile function play an important role. Steady eyes are a sign of a stable mind. The eye is the mirror of the mind. Enjoy mental peace and calmness by practicing it regularly.
Kapalbhati:
In this, the pranayama posture of the hand is made by sitting upright in Siddhasana or Padmasana. After this, the breath is exhaled with a loud shock. In doing this, the stomach first moves outward and then it is pulled inward and is applied towards the spine.
This action is repeated several times. This removes the increased amount of carbon dioxide present in the body and supplies oxygen to the internal organs of the body. Repeating this action repeatedly is called Vatakarma Kapalabhati. Kapha related defects are also removed by its practice.
shatkarma षट्कर्म
neti kriya sadhak vipin yogacharya | . |
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